Wednesday 24 November 2010

वन्या का खजाना


वन्या मानती है कि भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ नहीं होती क्योंकि बिना यह बात समझाए उसे हिंदी और अंग्रेज़ी की कई क्लासिक कहानियां सुना पाना मुश्किल होता। हालांकि परियों और जिन्नों के बारे में भी उसे यही बात बताई गई थी लेकिन उनका अस्तित्व न होने की बात पर वन्या पूरा विश्वास नहीं करती। उसे ज़मीन के नीचे खजाने छुपे होने पर भी पर भरोसा है।
एक दिन जब वह स्कूल लौटी तो उसके चेहरे पर वह विशेष भाव था जो अक्सर होता है और जिसका मतलब होता है कि उसके पास बताने के लिए बहुत जबरदस्त खबर है। मैंने भी अपेक्षित उतावली दिखाते हुए मनुहार की कि, "प्लीज़ बता न क्या बात है?"
काश कि मैं उस समय उसके चेहरे पर खुशी और उत्तेजना के उन भावों को शब्दों से समझा पाती!! "मम्मा, पता है आज मुझे खज़ाना मिला।
यानी मेरा अंदाज़ा बिल्कुल ठीक था, खबर सचमुच बहुत बड़ी थी। इसे पूरी संज़ीदगी के साथ सुना जाना था और मैंने अपनी छोटी आंखों को जितना कर सकती थी बड़ा करते हुए पूछा, "खजाना....? कहां?"
"स्कूल में, हमारी क्यारी में," वन्या ने जवाब दिया। "आज न हमारी निराई-गुड़ाई की क्लास थी, मैं अपनी क्यारी से घास निकाल रही थी तो मुझे उसके नीचे दबे खजाने से चार मोती मिले।" फिर थोड़ा रुक कर कुछ सोचते हुए उसने आगे कहा, "मतलब तीन मोती थे और एक बटन था।" कहीं यह बात मेरी नज़र में खज़ाने का मोल कम न कर दे इसलिए उसने जोर देते हुए कहा, "लेकिन वह बटन बहुत चमकीला था सोने जैसा।"
मेरे चेहरे पर खुशी मिश्रित आश्चर्य का भाव अब तक उसी तरह से चिपका था। अब वन्या ने थोड़ा मुंह लटकाते हुए कहा, "लेकिन वो बटन हर्ष ने ले लिया, वो कह रहा था कि वो उसकी जैकेट का है जो गिर कर खो गया था।" बटन हाथ से निकल जाने का दुख पल भर में बिसराते हुए वन्या हंसी उड़ाती हुई आवाज़ में बोली, "मैंने आद्या को बताया तो वो भी अपनी क्यारी खोदने लगी। खोदती रही...खोदती रही लेकिन उसको बस एक टूटा मोती मिला।"
अपने एकालाप को रोक कर अब उसने इस पूरे प्रकरण पर मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए अब मेरी ओर रुख किया। मैंने तुरंत परम जिज्ञासा के साथ सवाल किया, "लेकिन तुमने उस खजाने का क्या किया?"
"मैंने पूरा खज़ाना खोदा नहीं, क्योंकि फिर सबको पता चल जाता। मैंने सारे मोती वहीं मिट्टी में दबा दिए और उसके ऊपर एक सफेद पत्थर रख दिए ताकि अगली बार आसानी से मुझे वह जगह मिल जाए।" वन्या ने निश्चिंतता से जवाब दिया। " लेकिन तुम उस खज़ाने का करोगी क्या?"
" कुछ भी कर सकती हूं, माला बनानी होगी तो वहीं से मोती ले सकती हूं या आद्या, मेघा, पारुल वगैरह के लिए भी माला बना सकती हूं.....वन्या ने इस सबसे फालतू सवाल बिना कुछ सोचे एक लापरवाह सा जवाब दे कर मुझे लाजवाब कर दिया।
ऐसे ही एक बार हमारे यहां रुकी एक अमेरिकी विद्यार्थी ने वन्या को एक छोटा सा चमकीला कांच का टुकड़ा देते हुए कहा कि यह तुम्हारा लकी चार्म है। वन्या ने मुझसे मतलब पूछा तो मैंने ऐसे ही कह दिया कि इससे जादू होता है। बात आई-गई हो गई। कुछ दिनों बाद वन्या नीचे से भागती-हांफती आई और बहुत खुफिया तरीके से फुसफुसाते हुए बोली, "अम्मा, आपने सही कहा था वो जादू वाला कांच है।" मुझे कुछ हवा नहीं थी कि किस बारे में बात हो रही है लेकिन इस बात को ज़ाहिर करना वन्या को नाराज़ करने का सबब बन सकता था, इसलिए मैंने चेहरे पर "देखा मैंने कहा था ना" वाला भाव लाते हुए बत्तीसी दिखा दी।
"पता है क्या हुआ... मैंने कागज को जो नाव बनाई थी वो मैंने इस वाली पॉकेट में डाली थी, इसी में जादू वाला कांच भी था। लेकिन जब मैं नीचे खेल रही थी मैंने पॉकेट में हाथ डाल कर देखा तो वो कांच दूसरे वाली पॉकेट में पहुंच चुका था। हुआ न जादू!! और क्या... भला इससे बड़ा जादू कुछ हो सकता है भला?
मैं पूरी शिद्दत के साथ चाहा कि बच्चों में यह मासूमियत और छोटी-छोटी चीज़ों में चमत्कारिक खुशियां खोज निकालने की उनकी काबिलियत हमेशा बने रहे,परियों में, जादू में और मिट्टी में दबे खजानों पर उनका भरोसा हमेशा बना रहे।