Wednesday 23 February 2011

बंसुरिया बजाओ न श्याम

आज सुबह बहुत मज़ेदार बात हुई। वन्या को स्कूल भेजने के बाद मैं सफाई वगैरह के काम में व्यस्त थी और अरू पास में ही बैठा कुछ चीजों के साथ खेल रहा था। कंप्यूटर पर पंडित छुन्नुलाल मिश्र अपनी विशिष्ठ शैली में स्वरलहरियां बहा रहे थे। थोड़ी देर बाद अरण्य ने मुझे एक लकड़ी की छोटी सी डंडी दिखाते हुए पूछा, "अम्मां इसकी बांसुली बना लूं?" मैंने कहा, "हां बना लो!"


दरअसल अरण्य को वाद्यों का बहुत शौक है उसका सपना है कि जब कभी उसका अकेले का कमरा होगा तो उसमें बड़ा वाला ड्रम, तबला, हारमोनियम, गिटार, सितार, खड़ताल और एक बड़ी वाली घंटी (ये पता नहीं वह किसके लिए कहता है) ज़रूर होना चाहिए। शायद हमारे यहां अक्सर होने वाले संगीत कार्यक्रमों में कलाकारों को देख कर ही उसका रुझान इस ओर हुआ हो। खैर तो जब वह लकड़ी को बांसुरी की तरह होंठ पर सजा कर मुंह से आवाज़ निकालने लगा तो मैं उसकी ओर देखने लगी। कुछ देर बजाने के बाद वह बोला, "अले....बजा तो रहा हूं!! वह कंप्यूटर की तरफ देख कर बोल रहा था। मिश्रा जी के बोल सुन कर मुझे समझ में आया कि माजरा क्या है। वह गा रहे थे "अब ना बजाओ बंसुरिया श्याम"। यहां पर 'न बजाओ- न बजाओ' को ही बार-बार दोहरा रहे थे जिसे अरू समझ रहा था कि जैसे वो मनुहार कर रहे हों कि "बजाओ ना...बजाओ ना ..बजाओ "। इसलिए अरू उनके अनुरोध का मान रखने के लिए बांसुरी बजाने की एक्टिंग कर रहा था।

मैंने हंसते-हंसते उसे बताया कि वो बजाने के लिए नहीं बल्कि ना बजाने के लिए कह रहे हैं। "नहीं वो कह रहे हैं बजाओ ना बजाओ ना" अरू अपनी बात पर अड़ा रहा। "अच्छा तुम ध्यान से सुनो तो तुम्हें समझ आ जाएगा, मैंने सलाह दी। अरू ने थोड़ी देर सुनने की कोशिश की और फिर बोला, "अले अम्मा, वो कह रहे हैं कि शाम को मत बजाओ..." अभी तो बजा सकते हैं। इस बार वह श्याम को शाम समझ बैठा था। उसके बाद मेरी जो हंसी फूटी क्या बताऊं और अरण्य चेहरे पर बड़ा सा प्रश्नवाचक चिन्ह लिए मेरी ओर ताके जा रहा था।

Saturday 19 February 2011

अरू का अंग्रेज़ी ज्ञान

अरण्य को बहुत अच्छा लगता है जब उसे किताबों से कहानियां पढ़ कर सुनाई जाएं लेकिन किताब दिखा कर ही अगर उसे अ-आ, क-ख, एबीसीडी या एकदोतीन सिखाने की कोशिश करो तो उसे पसंद नहीं आता। बहरहाल कुछ दिन पहले जब मैं अरण्य को चिढ़ाने के लिहाज़ से वन्या से कह रही थी कि, “देखो अरू को एबीसीडी भी नहीं आती, पता नहीं इसका स्कूल में एडमिशन कैसे होगा।
"आती है जी," तपाक से जवाब देते हुए अरू महाशय बोले कि मुझे पूरे दस तक एबीसीडी आती है।" उसके इस लाजवाब कर देने वाले जवाब के बाद मैं और वन्या एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। ज़ाहिर है कि उसे पता था कि गिनती या एबीसीडी में से कोई चीज़ तो दस तक आनी चाहिए तो एबीसीडी ही सही।



कुछ दिन पहले हम अपने एक दोस्त के घर पर थे तो उनकी किशोरवय बेटी ने मुझसे आ कर पूछा, "मौसी अरू इतनी ज़ल्दी पढ़ना कैसे सीख गया?" मैंने जवाब दिया, “नहीं तो …वह तो अभी हिंदी अंग्रेज़ी अक्षर तक नहीं पहचान पाता...क्यों पूछ रही हो?
"अरे मैंने उसे बिस्कुट का पैकेट पकड़ाया तो बहुत ध्यान से रैपर पढ़ते हुए उसने कहा कि ये तो ब्रिटेनिया का गुडडे बिस्कुट है, मुझे कोई दूसरा दो। जब उसने पूछा कि तुम्हें कैसे पता तो उसने जहां रैपर पर लिखा था उसे हिज़्जों में बांट कर पढ़ने के अंदाज़ में बोला देखो लिखा है ना ब्रि...टे...नि...या।" फिर नीचे पढ़ कर दिखाया कि, "देखो ये लिखा है गु..ड...डे"। तीन साल के बच्चे को इतना आत्मविश्वास के साथ पढ़ते देख कर उसे यकीन नहीं हुआ इसलिए उसने उसने एक चॉकलेट निकाल कर पूछा, "अच्छा बताओ इसमें क्या लिखा है?" तुरंत जवाब आया, "कैडबरी डेयरी मिल्क"!


अरू की प्रतिभा से वह इतनी प्रभावित हो गई कि तुरंत मेरे पास पुत्र प्रशंसा हेतु पहुंच गई। तब मैंने उसके ज्ञान चक्षु खोलते हुए बताया कि, "बेटा जब एक दिन वन्या के पिता जी उसे तरह-तरह की चीज़ें बनाने वाली कंपनियों, उनके ब्रांड और उनके विज्ञापनों का गोरखधंधा समझाने के लिहाज से बिस्कुट, चॉकलेट, टॉफी और साबुन जैसी चीज़ों का उदाहरण दे रहे थे तो अरण्य जी भी ध्यान से सुन रहे थे। इसलिए अब घर पर जब भी कोई चीज़ आती है अरण्य वन्या से या किसी से भी उसका नाम बाकायदा कहां पर क्या लिखा है, करके पूछ लेते हैं और अक्सर दूसरों के सामने अपने इस ज्ञान का प्रदर्शन बहुत शानदार तरीके से करते हैं। हमारे घर पर क्योंकि टीवी नहीं है इसलिए जब भी कहीं दूसरी जगह टीवी देखने का मौका मिलता है तो अपनी जानी-पहचानी चीज़ों के विज्ञापन देख कर वह खुश हो उठता है, "देखो दीदी, अंकल चिप्स..टीवी में भी आ रहा है।"