Sunday, 29 August 2010

पिंकू का पप्पा



मैं दादी बन गई!! हां भई आशीष और मैं दादा-दादी और वन्या बुआ बन गए हैं। और अरण्य साहब पापा बन गए हैं पिंकू के। हालांकि पिंकू जी अरण्य के पैदा होने से पहले से ही घर में विराजमान हैं लेकिन उन्हें अरू का बेटा बनने का सौभाग्य हाल ही में मिला। एक दिन अचानक ही अरण्य ने उसका पप्पा बनने का फैसला कर लिया और आशीष से बोला कि आप इसे सुंदरू-मुंदरू बोलो क्योंकि आप इसके दादा जी हो। अरू के अपने दादा जी उसे सुंदरू-मुंदरू कहके लाड़ जताते हैं तो आशीष को भी उसी लाइन पर चलने का आदेश मिला। वन्या को भी बुआ का पात्र कई बार इच्छा न होने के बावजूद जब-तब निभाना पड़ जाता है। इन दिनों हमें हर वक्त पिंकू का ध्यान रखना पड़ता है, कभी अरू आ कर कहता है आपने सुना नहीं पिंकू रो रहा है कि मुझे गोदी में उठाओ। कभी पिंकू को कुछ खास चीज़ खाने को चाहिए होती है। कभी वो चार लड्डू खा लेता है जिससे उसके पेट में दर्द हो जाता है। एक-दो बार अरण्य ने आधी रात को उठ कर भी पिंकू की खोज-खबर ली है, पिंकू सोता भी अपने पप्पा के साथ है। अरू किसी भी बात पर चाहे कितनी ही ज़ोर से क्यों न रो रहा हो, अगर उससे कहो कि पिंकू क्या सोचेगा पप्पा को रोते देख कर, तो वह फौरन चुप हो कर हंसने लगता है। सबसे मज़ेदार बात यह है कि उसे भी पता है कि यह पूरा खेल है लेकिन वह इस खेल को इतनी संज़ीदगी से खेलता है कि हंसी आती है।

पिंकू और उसके पप्पा की फोटो भी साथ में दी है।

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