Wednesday 28 November 2012

मास्टर का भाई



सुबह अरण्य को झुमरू, बड़े-बड़े बालों वाले हमारे खूबसूरत कुत्ते, से बात करते देख मुझे अचानक पिछले साल की वो बात याद गई। दरअसल झुमरू से पहले हमारे पास तीन और कुत्ते पल चुके हैं लेकिन उनके अंततः इलाके में अक्सर गश्त लगाते बाघों का  निवाला बन जाने के बाद हमने तय किया था कि बस अब कोई कुत्ता नहीं पाला जाएगा।
लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि दूर मुनस्यारी के गांव से झुमरू जी हमारे यहां गए। आशीष ने इस मौके को बच्चों में जिम्मेदारी, पशु-प्रेम जैसी कुछेक भावनाएं विकसित करने की कोशिश के तहत वन्या को झुमरू का पदासीन मास्टर नियुक्त करते हुए उसे समय पर खाना देने, घुमाने ले जाने जैसे काम उसके जिम्मे डाल दिए।
आशीष ने अपने खास अंदाज में दोनों बच्चों को बाकायदा एक महीने के कूं-कूं कर रहे झुमरू के सामने खड़ा कर उनकी जिम्मेदारियों की गंभीरता समझाते हुए एक लंबा और बोरियत भरा (सिर्फ मेरे लिए...!! वन्या और अरण्य तो पापा की हर बात का मज़ा ऐसे लेते हैं जैसे वो कानों में पड़ रहे शब्द नहीं मुंह में गिर रही चॉकलेट की धार हो) भाषण भी दिया। तब चार साल का रहा अरू भी पूरी तन्मयता से लेक्चर सुन रहा था और उसी गंभीरता से उसने पूछा 'दीदी झुमरू की मास्टर है लेकिन मैं क्या हूं?' वन्या ने खुद को मिल रहे इतने महत्वपूर्ण पद में अरू की दखलंदाज़ी को पूरी तरह से नकारते हुए बड़ी बहन वाली भाषा में कहा "अरे तू तो मेरा भाई है न इसलिए वो तूझे भी पहचान जाएगा।"
उसके बाद आलम यह था कि वन्या झुमरू के साथ गुजरने वाले हर पल में उसे यही समझाती रहती थी कि वह उसकी मास्टर है इसलिए उसे बड़े हो कर उसका कहना मानना होगा और इस मुहिम में अरू भी पूरी संजीदगी के साथ जुड़ा था।
एक सुबह देखती हूं कि झुमरू घर के पीछे वाले पेड़ के नीचे आराम से बैठा धूप सेक रहा है। मुश्किल यह थी कि धूप में बैठने के लिए अरू की पसंदीदा जगह भी वही थी। वन्या यानी झुमरू की मास्टर स्कूल जा चुकी थी अब झुमरू को वहां से कैसे हटाया जाएगा। अरू ने बिल्कुल वन्या वाली स्टाइल में मुंह में अंग्रेज़ी के अक्षर गोल-गोल घुमाते हुए बोला, "ज़ुमरु गो-गो" (ये पता नहीं कहां से और कैसे बना लेकिन दोनों बच्चों का विश्वास था कि कुत्ते सिर्फ अंग्रेज़ी ही समझते हैं)। 
मेरा बेचारा देहाती बच्चा अपनी सीमित अंग्रेज़ी की मदद दे कैसे उस स्थिति से जूझ रहा था वह देखने वाला नज़ारा था। बहुत बार 'गो-गो' की टेर के बाद भी उंनींदा सा झुमरू वहां से टस से मस नहीं हुआ तो अरू ने अपनी आवाज़ जरा ऊंची करते हुए उसे धमकाया, "झुमरू गो। उधर सिट। पता है आइ एम मास्टर ब्रदर।
सोचिए बेचारे अरू की हालत क्या हुई होगी जब "तू जानता नहीं कि मैं कौन हूं" की तर्ज़ पर 'मास्टर का ब्रदर' होने की हैसियत जतलाने के बाद भी झूमरू ने उसके लिए जगह छोड़ना तो दूर पूंछ तक हिलाने की ज़हमत नहीं उठाई।

आउच



 "मम्मा!"
"हूं"
"सुनो तो"
"क्या है"
"अरे सुनो तो बहुत मज़ेदार बात है।"
"बता फिर"
"पता है आजकल जब हम क्लास में आउच बोलते हैं तो पुष्पा दीदी (class teacher) कहती हैं अरे आउच मत बोलो नहीं तो रश्मि का भाई जाएगा।"
(रश्मि अरू की क्लास में पढ़ती है और उसका भाई अभी 15-20 दिन पहले ही पैदा हुआ है)
"क्यों, आउच बोलने से रश्मि का भाई क्यों आएगा?"
"अरे उसके भाई का नाम आउच है ना...इसलिए।"
"पागल है क्या किसी का नाम आउच होता है क्या?"
"जी.. हां होता है जीरश्मी ने ही पुष्पा दीदी को बताया था जी..।" (तीनों बार जी पर ज़्यादा जोर था)
अब तक चुपचाप नाश्ता कर रही वन्या ने मुझे समझाते हुए कहा, "मम्मा रश्मी के भाई का नाम आयुष है कि आउच।"

(चार पांच साल के बच्चों के मुंह से 'आयुष' का उच्चारण 'आउच' की कल्पना से मुझे हंसी गई। अरू के माथे पर गुस्से की लकीरें देख कर अंदाज़ा लग गया कि गल्ती हो गई है बॉस, मेरी हंसी से अरू के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी।)

"जी नही उसका नाम आउच है जी..अरू अब भी अड़ा है।
"आयुष है" वन्या ने दोहराया।
"आउच"
"आयुष"
"आउच"
"आयुष"
.....मम्मा अरू को देख लो लड़ाई कर रहा है...
"मम्मा पहले दीदी ने लड़ाई शुरु की...
....................वां..आं....वां.....मम्माआआ......