Friday 30 July 2010

गुड़िया के कपड़े और चमक-चमक


आज वन्या और मैंने मिल कर गुड़िया के लिए कपड़े सिले। गुलाबी सिल्क का लहंगा और नीले-गुलाबी रंग की कुर्ती। वन्या कपड़े देख कर खुश थी और मैं वन्या को देख कर। वन्या अब सात साल की होने वाली है और अब तक गुड़ियों में उसकी खास दिलचस्पी नहीं रही है। लेकिन इस बार चंडीगढ़ में ओशी का बार्बी का वॉर्डरोब देख कर उसे लगा उसकी गुड़िया के पास तो बदलने के लिए कोई कपड़े ही नहीं हैं इसलिए यह नया लहंगा-कुर्ती सिला गया। नए कपड़े पहनाने के बाद ही गुड़िया में वन्या की दिलचस्पी खत्म हो गई और उसे उसी कोने में रख दिया गया जहां महीनों तक उसकी कोई सुध नहीं ली जाती।


अरण्य जब भी कोई नई शैतानी करता है मैं सोचती हूं इसे तो जरूर नोट करूंगी कहीं ताकि बाद में भी कभी याद करके हंस सकूं लेकिन अब तक तो ऐसा संभव हो नहीं पाया। आज जब लिखने बैठी हूं तो सब कुछ गड्ड-मड्ड हो रहा है। हालांकि उसकी चमक-चमक वाली बात पूरी तरह से मेरे दिमाग से निकल चुकी थी लेकिन ममता के साथ फोन पर हुई बातचीत से मुझे वह बात याद आ गई।


ममता हमारी पारिवारिक दोस्त हैं। उनकी बेटी और वन्या लगभग बराबर उम्र के हैं और जब से पैदा हुए हैं हर गर्मियों में 15-20 दिन साथ बिताते हैं। इस जून में भी ममता और तारा हमारे घर आए थे। एक दिन अरण्य दिन भर बहुत चिड़चिड़ा और जिद्दी बना रहा और हमें बहुत परेशान किया। शाम होते होते मैंने और ममता ने सोचा कि कुछ समय उस पर बिल्कुल ध्यान न दिया जाए और हम लोग अपना-अपना काम करने लगें तो शायद वह कुछ शांत हो।


ममता एक किताब ले कर तारा और वन्या को कहानी सुनाने लगी, अरण्य को अब तक यह अहसास हो गया था कि कोई उसे घास नहीं डाल रहा है तो वो भी चुपचाप कहानी सुनने बैठ गया। ममता तारा और वन्या से कुछ-कुछ पूछ कर अरण्य को यह जता रही थी कि हम लोग तुमसे नाराज़ है। अरण्य ने ममता का ध्यान अपनी ओर खींचने के उद्देश्य से कहानी के किसी हिस्से के बाद बहुत संजीदा हो कर पूछा, "इछका का मटलब है?" ममता ने जवाब देने की बजाय नाराजगी भरी आंखों से तरेर कर उसे देखा।


थोड़ी देर चुपचाप वहां से उठ कर अरण्य मेरे पास आया। मैं बिना उस पर ध्यान दिए अपने काम में लगी रही लेकिन छिपी आंखों से उस पर नज़र रखे थी। इस अंदाज में जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उससे बोल रहा है या नहीं, अरण्य ने मुझसे कहा, "ये ममटा मौशी बड़ा चमक-चमक के देख रही है मुझे!" पहले तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन जब ममता ने मुझे बताया कि ये चमक-चमक शब्द उसने उनकी गुस्से वाली आंखों के लिए ईज़ाद किया है तो हमारा हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया। कुछ दिन पहले ही एक कलैंडर में गणेश जी की आंखों के लिए भी उसने यही शब्द इस्तेमाल किया तो मैंने गौर किया कि सचमुच गणेश जी भी उसमें कुछ गुस्से से भरे लग रहे थे।

1 comment:

  1. I love to read this blog,its pleasent, but your are not very friquent,specially on 'vanya and annanya', may be it takes and needs time but its disappointing to not find any new writng on the blog.

    ReplyDelete